यात्रा वृत्तांत

यात्रा वृत्तांत को भी एक विधा के रूप में स्वीकृति आधुनिक युग में मिली है. इसे पाश्चात्य सम्पर्क का परिणाम माना जाता है.
यात्रा में स्थान, दृश्य, प्रदेश आदि का व्यक्तित्व वर्णन के माध्यम से उभरता चलता है. यात्री अपने साहित्य में संवेदनशील होकर भी तटस्थ रहता है. ऐसा न होने पर यात्रा के स्थान पर यात्री के अधिक प्रधान हो उठने की संभावना है. यात्रा के पथ पर मिलने वाले नर-नारी, मंदिर-मस्जिद, किले, नदी, पहाड़ को सजीव बना दिया जाता है. यात्री अपनी यात्रा को मानसिक प्रक्रियाओं के रूप में ही ग्रहण करता है. अपने को केन्द्र में रखकर भी प्रमुख न होने देना साहित्यिक यायावर का कर्त्तव्य है क्योंकि यदि लेखक का व्यक्तित्व उभरेगा तो अन्य सब गौण हो जायेंगे और यात्रा-साहित्य, साहित्य न होकर आत्म चरित्र ही रह जाएगा.
यात्रा वृत्तांत अधिकतर संस्मरण के रूप में होता है. उसमें रेखा चित्र के गुण भी होते हैं. राहुल सांकृत्यायन ‘मेरी चीन यात्रा’, भगवतशरण उपाध्याय ‘वो दुनिया’, ‘सागर की लहरों पर’, अज्ञेय ‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’, यशपाल ‘राह बीती’, ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, रामवृक्ष बेनीपुरी ‘पाँवों में पंख बाँधकर’ और प्रभाकर द्विवेदी ‘पार उतरि कहँ जइहौ’, ‘धूप में सोई नदी’ आदि प्रमुख यात्रा वृत्तांत लेखक हैं. अज्ञेय के नेतृत्व में जय जानकी जीवन यात्रा नाम से बिहार, नेपाल, और उत्तर प्रदेश की यात्रा कर अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र, शंकर दयाल सिंह, प्रभाकर द्विवेदी, इला डालमिया और गिरिराज किशोर ने सहयोगी यात्रा वृत्तांत लिखने का प्रयोग भी किया है. प्रभाकर द्विवेदी ने यात्रा वृत्तांत को स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित कर अत्यंत रोचक एवं हृदयस्पर्शी यात्रा वृत्तांत लिखे हैं.

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